बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
अथवा
नैतिक विचार के एक संप्रदाय के रूप में अन्तःअनुभूतिवाद का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
रैशडल के शब्दों में, "नैतिकता सच्चे मान व शुभ की वृद्धि करने में निहित है, परन्तु यह एक ऐसा शुभ है जिसमें सुख केवल एक तत्व मात्र है। इस प्रकार रैशडल के अनुसार सुख शुभ अवश्य है, परन्तु वह परम शुभ नहीं है। अपना और दूसरों का सुख बढ़ाना सर्वथा उचित है और प्रत्येक मनुष्य को ऐसा करना चाहिये, परन्तु यदि ऐसा करने में नैतिक गुणों का ह्रास होता है तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिये। आदर्श उपयोगिताबाद के अनुसार नैतिक मूल्य ही परम श्रेय है। सुख नैतिक मूल्य से गौण है।
अतः आदर्शवादी उपयोगितावाद मूल्यों पर बल देता है। रैशडल के अनुसार सद्गुण (Virtue) परम मूल्य है। अन्य सभी मूल्य सद्गुण के अधीन हैं। सद्गुण के विषय में रैशडल लिखता है कि "यह मूल्य सब मूल्यों में महानतम है। इस प्रकार ज्ञान, सौंदर्य, संस्कृति सभी सद्गुण के अधीन हैं, परन्तु परम मूल्य एक अवयवीय (Organic) पूर्ण है। उसमें इन सभी मूल्यों का अपना स्थान है। ये सभी उसके अंश हैं। नैतिक जीवन में भी सभी हैं, इन सभी में सामंजस्य है। इस प्रकार नैतिक जीवन केवल आदर्श जीवन ही नहीं है बल्कि उसमें आनन्द है, ज्ञान और सौंदर्य है।
रैशडल ने लिखा है, "हम ज्ञान, संस्कृति, सौन्दर्य के उपयोग, सब प्रकार के बौद्धिक कार्य को खाने और पीने अथवा शारीरिक कसरत करने या ऐसी ही अन्य केवल पाश्विक प्रवृत्तियों की सन्तुष्टि से उत्पन्न होने वाले सुखों से उच्चतर मूल्य रखने वाले समझते हैं।"
उपयोगितावाद - उपयोगितावाद (Utilitarianism) के अनुसार, कोई भी वस्तु स्वयं शुभ नहीं होती, बल्कि अपनी उपयोगिता के कारण शुभ मानी जाती है। रैशडल के मत के अनुसार, नैतिक निर्णय मूल्यों के निर्णय होते हैं, परन्तु ये निर्णय कार्य की उपयोगिता के अनुसार दिये जाते हैं। जो कार्य मानव कल्याण अथवा सार्वभौम कल्याण के लिये जितना ही अधिक उपयोगी है वह उतना ही मूल्यवान है। इस प्रकार अन्य उपयोगितावादियों के समान रैशडल भी सर्वजन- कल्याण को शुभ मानता है। इस सर्वजन कल्याण में नैतिक गुण, ज्ञान, सौन्दर्य, आनन्द सभी सहायक हैं, सभी सम्मिलित हैं।
इस प्रकार उचित वह है जोकि मानव कल्याण में सहायक हो और मानव कल्याण में बाधक अनुचित है। अतः रैशडल के अनुसार, सुख किसी कार्य का एक साधन है। साधन होने से ही वह उचित है। बाधक होने पर वह अनुचित कहा जायेगा।
सिजविक ने शुभ के वितरण के लिए बटलर के तीन सिद्धान्तों का समर्थन किया है। बटलर के अनुसार शुभ के वितरण के तीन सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(1) बौद्धिक आत्म-प्रेम (Rational Self Love),
(2) उदारता या परोपकार (Benevolence ), तथा
(3) न्याय (Justice)।
रैशडल भी शुभ के वितरण के लिये इन्हीं तीनों सिद्धान्तों को मानता है।
(1) बौद्धिक आत्म-प्रेम - बौद्धिक आत्म-प्रेम व्यक्ति के जीवन में शुभ के वितरण का सिद्धान्त है। उसका लक्ष्य व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का अधिकतम शुभ है। अतः वह अधिक शुभ के सम्मुख कम शुभ को बलिदान कर देने का आदेश देता है। इस प्रकार यह व्यावहारिक विवेक (Prudience) का सिद्धान्त है।
(2) परोपकारिता - परोपकारी व्यक्ति दूसरों के शुभ को भी अपने शुभ के समान महत्वपूर्ण समझता है। यदि दूसरों का हित अपने हित से अधिक हो तो परोपकारी व्यक्ति दूसरों का हित चुनेगा।
( 3 ) न्याय - न्याय व्यक्ति और समाज दोनों में शुभ के समान वितरण का सिद्धान्त है। न्याय के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को शुभ में भाग पाने का बराबर अधिकार है, परन्तु यह अधिकार उनकी योग्यता के न्यूनाधिक होने के साथ-साथ न्यूनाधिक होता जाता है।
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- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
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- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
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- प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
- प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
- प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
- प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
- प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?